राजस्थान के लोक वाद्य यन्त्र notes 2
घन वाद्य यंत्र :–
ऐसे वाद्य यंत्र जो धातु से बने हो तथा जिनके चोट मारने पर आपस में टकराने पर छन् छन्, छम छम, टन् टन् आदि की आवाज आए उसे घन वाद्य यंत्र कहते हैं।
3.झांझ :- मंजीरे का विशाल रूप है शेखावटी क्षेत्र में कच्ची घोड़ी नृत्य में ताशो के साथ बजाया जाता है
4.खड़ताल :- मुख्य रूप से साधू सन्यासियों का वाद्य यंत्र है।
5.मंजीरा :- पीतल और कांसे की मिश्र धातु का गोलाकार वाद्य यंत्र होता है।
6.घंटा :- पीतल जस्ता तांबे या अन्य धातु का गोलाकार वाद्ययंत्र जिसे मोटी रस्सी या जंजीर से लटकाकर घुंडीनुमा ठोस धातु से चोट देकर बजाया जाता है वर्तमान में इसका प्रयोग मंदिरों में किया जाता है तथा घंटे का छोटा रूप घंटी कहलाता है।
7.वीर घंटा :- मंदिरों में आरती के समय पुजारी एक हाथ से वीर घंटा बजाता है।
8.टंकोरिया :- यह वाद्ययंत्र घरो में पूजा के समय प्रयोग मे लिया जाता है।
9.श्री मंडल :- यह लकड़ी का बना होता है जिसके अंदर छोटे छोटे गोल कांसे या तांबे के टंकोरे लटके हुए होते हैं जिन्हें लकड़ी की दो पतली डंडियों से दोनों हाथों से बजाया जाता है।
थाली ,चिमटा, हांकल ,घुंघरू ,करताल ,रमझोल ,लेझीम ,चूड़ियां ,डांडिया , गड़ा /मटकी/ घट आदि।
तत वाद्य यंत्र तार से निर्मित वाद्य यंत्र :–
ऐसे वाद्ययंत्र जिनका निर्माण लकड़ी या धातु से होता है परंतु उनके तार लगे होते हैं और इन तारों को बजाने से ही ध्वनि उत्पन्न होती है उन्हें तत वाद्य यंत्र कहते है।
1.जंतर वीणा की आकृति वाला यह वाद्ययंत्र गुर्जर भोपो का प्रसिद्ध वाद्य है।
2.रावण हत्था इस वाद्य यंत्र का प्रयोग पाबूजी डूँगजी जवाहर जी के भोपे कथाएं गाते समय करते हैं भीलों के भोपे पाबूजी की पड़ बाँचते समय रावण हत्या का प्रयोग करते हैं।
3.सारंगी तत वाद्यों में सर्वश्रेष्ठ इसका प्रयोग जैसलमेर और बाड़मेर क्षेत्र में लंगा जाति के लोग करते हैं।
4.भपंग यह मेवात प्रदेश का एक प्रसिद्ध लोक वाद्य है इसे अलवर क्षेत्र के जोगी बजाते हैं यह तंबू को काटकर बनाया जाता है यह वाद्ययंत्र डमरु से मिलता-जुलता है।
5.कामायचा सारंगी के समान वाद्ययंत्र जैसलमेर बाड़मेर क्षेत्र में इस वाद्य यंत्र का प्रयोग प्राय मुस्लिम शेख करते हैं जो मांगणियार कहलाते हैं।
6.सुरिन्दा लंगा जाति द्वारा सातारा एवं मुरला वाद्ययंत्र के साथ इसका प्रयोग किया जाता है।
7.तंदूरा वाद्य यंत्र है इसे वेणो या चौतारा भी कहा जाता है।
सुषिर वाद्य यंत्र फूँक से बजाए जाने वाले वाद्य यंत्र :–
ऐसे वाद्ययंत्र जिनका निर्माण लकड़ी या धातु रूप से किया जाता है परंतु उनमें हवा देने या फूंक मारने से ध्वनि उत्पन्न होती है सुषिर वाद्य यंत्र कहलाते हैं
1.शहनाई सागवान की लकड़ी से बना यह वाद्ययंत्र चिलम के आकार का होता है यह सुषिर वाद्य यंत्रों में सर्वश्रेष्ठ है भारत में बिस्मिल्ला खां प्रमुख शहनाई वादक थे।
2.अलगोजा इसमें दो बांसुरिया होती है जिन्हें एक साथ बजाया जाता है।
3.सतारा अलगोजे बांसुरी और शहनाई का समन्वित रूप है
4.मोरचंग इसे सातारा एवं सारंगी के साथ भी प्रयुक्त किया जाता है।
5.मशक भेरुजी के भोपो का प्रमुख वाद्ययंत्र इसकी आकृति पुंगी की तरह होती है यह वाद्ययंत्र विशेष रूप से सवाई माधोपुर एवं अलवर जिले में प्रचलित है।
6.नड़ यह चरवाहों या गायों को चराने वालों का प्रिय वाद्य यंत्र है करना भील प्रसिद्ध नड़ वाद्य के प्रमुख कलाहकार है इनका नाम लंबी मूछों के कारण गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज है।
7.सिंगी जोगियों द्वारा बजाया जाने वाला वाद्य यंत्र।
8.सिंगा यह पीतल से बना साधु द्वारा प्रयुक्त वाद्य यंत्र है।
9.तुरही पीतल से बना हुआ वाद्य यंत्र जिसे प्रमुखता है युद्ध क्षेत्र में प्रयुक्त किया जाता है।
10.बांसुरी, बरगु, टोटौ प्रसिद्ध सुषिर वाद्य यंत्र है।
अवनध्द या ताल वाद्य यंत्र चमड़े से ढके हुए वाद्ययंत्र :–
ऐसे वाद्ययंत्र जिनका निर्माण लकड़ी या धातु के गोलाकार या अर्ध गोलाकार घेरे पर चमड़ा मढ़ कर किया जाता है तथा जिनके हाथ या वस्तु से चोट मारने पर ध्वनि उत्पन्न होती है उन्हें ताल वाद्य यंत्र कहते हैं।
1.डप/चंग/ढप होली के दिनों में बजाया जाने वाला प्रमुख वाद्ययंत्र पशुओं की खाल का बना होता है चंग नृत्य के साथ इसे शेखावटी क्षेत्र में मुख्य रूप से बजाया जाता है
2.मृदंग या पखावज भवाई, रावल, राबिया जातियाँ यह जातियां इस वाद्य यंत्र का मुख्य रूप से प्रयोग करती है।
3.नौबत मंदिरों में प्रयुक्त वाद्ययंत्र।
4.नगाड़ा/ब/टापक ढ़ोली जनजाति का विशिष्ट वाद्ययंत्र इसकी आकृति नौबत के समान होती है।
5.ताशा बांस की खपच्ची उसे मोहर्रम के अवसर पर बजाया जाने वाला वाद्य यंत्र।
6.माठ इस वाद्य यंत्र का प्रयोग पाबू जी के भक्तों द्वारा पाबूजी की फड़ बाचते समय विशेष रुप से किया जाता है।
7.मादल आदिवासियों का प्रसिद्ध वाद्य यंत्र यह शिव पार्वती का वाद्ययंत्र माना जाता है। यह मोलेला गांव में विशेष रूप से बनाया जाता है।
लोक वाद्य —- संबंधित जाति
रावणहत्था —- कान कूजरी
ढोलक, मंजीरा — कंजर
सारंगी —— जोगी
ढाल, मंजीरा, भूंगल — दवाई
नगाड़ा —- राणा/ढोली
चिकारा —- ढाढ़ी मांगणियार
पुंगी और खंजरी —- कालबेलिया
लंगे—— कमच्चा
ऐसे वाद्य यंत्र जो धातु से बने हो तथा जिनके चोट मारने पर आपस में टकराने पर छन् छन्, छम छम, टन् टन् आदि की आवाज आए उसे घन वाद्य यंत्र कहते हैं।
- टंकोरा/घंटा घड़ियाल :- यह कांसे तांबे जस्ते के मिश्रण से बनी एक मोटी गोल आकृति होती है जिसका वादन प्राय मंदिरों में आरती के समय तथा विद्यालयों में समय की सूचना देने के लिए किया जाता है।
3.झांझ :- मंजीरे का विशाल रूप है शेखावटी क्षेत्र में कच्ची घोड़ी नृत्य में ताशो के साथ बजाया जाता है
4.खड़ताल :- मुख्य रूप से साधू सन्यासियों का वाद्य यंत्र है।
5.मंजीरा :- पीतल और कांसे की मिश्र धातु का गोलाकार वाद्य यंत्र होता है।
6.घंटा :- पीतल जस्ता तांबे या अन्य धातु का गोलाकार वाद्ययंत्र जिसे मोटी रस्सी या जंजीर से लटकाकर घुंडीनुमा ठोस धातु से चोट देकर बजाया जाता है वर्तमान में इसका प्रयोग मंदिरों में किया जाता है तथा घंटे का छोटा रूप घंटी कहलाता है।
7.वीर घंटा :- मंदिरों में आरती के समय पुजारी एक हाथ से वीर घंटा बजाता है।
8.टंकोरिया :- यह वाद्ययंत्र घरो में पूजा के समय प्रयोग मे लिया जाता है।
9.श्री मंडल :- यह लकड़ी का बना होता है जिसके अंदर छोटे छोटे गोल कांसे या तांबे के टंकोरे लटके हुए होते हैं जिन्हें लकड़ी की दो पतली डंडियों से दोनों हाथों से बजाया जाता है।
थाली ,चिमटा, हांकल ,घुंघरू ,करताल ,रमझोल ,लेझीम ,चूड़ियां ,डांडिया , गड़ा /मटकी/ घट आदि।
तत वाद्य यंत्र तार से निर्मित वाद्य यंत्र :–
ऐसे वाद्ययंत्र जिनका निर्माण लकड़ी या धातु से होता है परंतु उनके तार लगे होते हैं और इन तारों को बजाने से ही ध्वनि उत्पन्न होती है उन्हें तत वाद्य यंत्र कहते है।
1.जंतर वीणा की आकृति वाला यह वाद्ययंत्र गुर्जर भोपो का प्रसिद्ध वाद्य है।
2.रावण हत्था इस वाद्य यंत्र का प्रयोग पाबूजी डूँगजी जवाहर जी के भोपे कथाएं गाते समय करते हैं भीलों के भोपे पाबूजी की पड़ बाँचते समय रावण हत्या का प्रयोग करते हैं।
3.सारंगी तत वाद्यों में सर्वश्रेष्ठ इसका प्रयोग जैसलमेर और बाड़मेर क्षेत्र में लंगा जाति के लोग करते हैं।
4.भपंग यह मेवात प्रदेश का एक प्रसिद्ध लोक वाद्य है इसे अलवर क्षेत्र के जोगी बजाते हैं यह तंबू को काटकर बनाया जाता है यह वाद्ययंत्र डमरु से मिलता-जुलता है।
5.कामायचा सारंगी के समान वाद्ययंत्र जैसलमेर बाड़मेर क्षेत्र में इस वाद्य यंत्र का प्रयोग प्राय मुस्लिम शेख करते हैं जो मांगणियार कहलाते हैं।
6.सुरिन्दा लंगा जाति द्वारा सातारा एवं मुरला वाद्ययंत्र के साथ इसका प्रयोग किया जाता है।
7.तंदूरा वाद्य यंत्र है इसे वेणो या चौतारा भी कहा जाता है।
सुषिर वाद्य यंत्र फूँक से बजाए जाने वाले वाद्य यंत्र :–
ऐसे वाद्ययंत्र जिनका निर्माण लकड़ी या धातु रूप से किया जाता है परंतु उनमें हवा देने या फूंक मारने से ध्वनि उत्पन्न होती है सुषिर वाद्य यंत्र कहलाते हैं
1.शहनाई सागवान की लकड़ी से बना यह वाद्ययंत्र चिलम के आकार का होता है यह सुषिर वाद्य यंत्रों में सर्वश्रेष्ठ है भारत में बिस्मिल्ला खां प्रमुख शहनाई वादक थे।
2.अलगोजा इसमें दो बांसुरिया होती है जिन्हें एक साथ बजाया जाता है।
3.सतारा अलगोजे बांसुरी और शहनाई का समन्वित रूप है
4.मोरचंग इसे सातारा एवं सारंगी के साथ भी प्रयुक्त किया जाता है।
5.मशक भेरुजी के भोपो का प्रमुख वाद्ययंत्र इसकी आकृति पुंगी की तरह होती है यह वाद्ययंत्र विशेष रूप से सवाई माधोपुर एवं अलवर जिले में प्रचलित है।
6.नड़ यह चरवाहों या गायों को चराने वालों का प्रिय वाद्य यंत्र है करना भील प्रसिद्ध नड़ वाद्य के प्रमुख कलाहकार है इनका नाम लंबी मूछों के कारण गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज है।
7.सिंगी जोगियों द्वारा बजाया जाने वाला वाद्य यंत्र।
8.सिंगा यह पीतल से बना साधु द्वारा प्रयुक्त वाद्य यंत्र है।
9.तुरही पीतल से बना हुआ वाद्य यंत्र जिसे प्रमुखता है युद्ध क्षेत्र में प्रयुक्त किया जाता है।
10.बांसुरी, बरगु, टोटौ प्रसिद्ध सुषिर वाद्य यंत्र है।
अवनध्द या ताल वाद्य यंत्र चमड़े से ढके हुए वाद्ययंत्र :–
ऐसे वाद्ययंत्र जिनका निर्माण लकड़ी या धातु के गोलाकार या अर्ध गोलाकार घेरे पर चमड़ा मढ़ कर किया जाता है तथा जिनके हाथ या वस्तु से चोट मारने पर ध्वनि उत्पन्न होती है उन्हें ताल वाद्य यंत्र कहते हैं।
1.डप/चंग/ढप होली के दिनों में बजाया जाने वाला प्रमुख वाद्ययंत्र पशुओं की खाल का बना होता है चंग नृत्य के साथ इसे शेखावटी क्षेत्र में मुख्य रूप से बजाया जाता है
2.मृदंग या पखावज भवाई, रावल, राबिया जातियाँ यह जातियां इस वाद्य यंत्र का मुख्य रूप से प्रयोग करती है।
3.नौबत मंदिरों में प्रयुक्त वाद्ययंत्र।
4.नगाड़ा/ब/टापक ढ़ोली जनजाति का विशिष्ट वाद्ययंत्र इसकी आकृति नौबत के समान होती है।
5.ताशा बांस की खपच्ची उसे मोहर्रम के अवसर पर बजाया जाने वाला वाद्य यंत्र।
6.माठ इस वाद्य यंत्र का प्रयोग पाबू जी के भक्तों द्वारा पाबूजी की फड़ बाचते समय विशेष रुप से किया जाता है।
7.मादल आदिवासियों का प्रसिद्ध वाद्य यंत्र यह शिव पार्वती का वाद्ययंत्र माना जाता है। यह मोलेला गांव में विशेष रूप से बनाया जाता है।
लोक वाद्य —- संबंधित जाति
रावणहत्था —- कान कूजरी
ढोलक, मंजीरा — कंजर
सारंगी —— जोगी
ढाल, मंजीरा, भूंगल — दवाई
नगाड़ा —- राणा/ढोली
चिकारा —- ढाढ़ी मांगणियार
पुंगी और खंजरी —- कालबेलिया
लंगे—— कमच्चा
Comments
Post a Comment